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यीशु को क्रूस पर मारे जाने की सजा मिली थी और इस घटना ने बड़ी संख्या में लोगों को आर्कषित किया जो इस मृत्युदण्ड को देखने आए थे। इनमें से कुछ लोग यीशु के इस दण्ड से प्रसन्न थे जबकि अन्य रो रहे थे तथा यीशु के प्रति इस प्रकार के व्यवहार से असहमत थे। क्रूस पर चढ़ाए जाने के एक स्थान पर, पहरेदारों ने यीशु के कपड़े को फाड़कर टुकड़े किए और उन पर चिट्ठियां डालने लगे यह देखने के लिए कि किसे उस तथाकथित भविष्यवक्ता की वह एकमात्र धन सम्पत्ति मिलेगी। एक पहरेदार जिसने यीशु का बागा जीता उसने यीशु की मृत्यु के पश्चात् यह स्वीकारा कि यीयु निर्दोष था, और उसने दुःख प्रगट किया।
अनेक वर्ष बीतने पर, उस पहरेदार ने यीशु की सांसारिक माता को खोज लिया तथा उसे यीशु का वह बागा दे दिया जो उसने उस दिन जीता था। उसने बताया कि उसने स्वयं यीशु के क्रूस पर चढ़ाए जाने को देखा था तथा यह भी बताया कि कैसे उस दिन यीशु ने उसका जीवन बदल दिया था?
आप क्या सोचते हैं कि जब रोमी सैनिक जिसने अपने आँखों से अंधकार, भुंईडोल, चट्टानों का फटना तथा यीशु की मृत्यु को देखा था, उसे कैसा अनुभव हुआ होगा?
आपके विचार से उस रोमी सैनिक को क्या हुआ जिसने कहा, "निश्चय यह परमेश्वर का पुत्र था?
क्या आप सोचते हैं कि रोमी सैनिकों में से कोई भी जिसने इस घटना को देखा यीशु का विश्वासी हुआ होगा?
तीन दिन के पश्चात् जब यह सूचना मिली कि यीशु मृतकों से जी उठा है तो आपके विचार से रोमी सैनिकों ने क्या सोचा होगा?
यह कहानी मूल रूप से मत्ती 27: 11-55 पर आधारित है। मरकुस 15:1-41; लूका 22:54-23:49 तथा यूहन्ना 18:28-19:37 में वर्णित समानान्तर कहानियों से इसमें किन्हीं भी बिन्दुओं को नहीं जोड़ा गया है।
इस पुस्तक के सीमित आकार को ध्यान में रखते हुए इस कहानी में यीशु की मृत्यु की अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं को छोड़ दिया गया है।
यद्यपि यह कहानी एक भयानक तथा क्रूर और वहशी कार्य से सम्बंधित है। किन्तु यीशु की मृत्यु मसीहियत का केन्द्र है अतः उन रोमी सैनिकों में ध्यान में रखते हुए जो यीशु की पहरेदारी कर रहे थे यहां पर इस घटना के मूल सत्य का परिचय कराने के लिए कोमल भाव से बताया गया है।